अपनी फ़िक्र करनी चाहिए
एक साहब ने कोई मसला पेश करके अर्ज़ किया कि फलां साहब ने यह दरयाफ़्त (मालूम) किया है। उनकी हालत के मुनासिब फ़रमाया कि ख़ुद आपको जो ज़रूरत हो उसको मालूम कीजिए, दूसरों के मामलात में नहीं पड़ना चाहिए। बड़ी ज़रूरत इस की है कि हर शख़्स (व्यक्ति) अपनी फ़िक्र में लगे और अपने आमाल (कामों) की इस्लाह (सुधार) करे। आजकल यह मर्ज़ (बीमारी) आम हो गया है, आवाम (जनता) में भी और ख़वास (ख़ास लोगों) में भी कि दूसरों की तो इस्लाह (सुधार) की फ़िक्र है अपनी ख़बर नहीं। मेरे मामूं साहब फ़रमाया करते थे कि बेटा, दूसरों की जूतियों की हिफाज़त (रक्षा) की बदौलत कहीं अपनी गठरी न उठवा देना, वाक़ई बड़े काम की बात फ़रमाई।
मल्फ़ूज़ात हकीम-उल-उम्मत: भाग 1, पृष्ठ 26
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